राम मंदिर में जल्द दिखेंगे रामलला के तीनों स्वरूप? ट्रस्ट की बैठक में हो सकता है अहम निर्णय

उत्तर प्रदेश के अयोध्या की राम मंदिर का निर्माण 22 जनवरी 2024 को हो गया था और इसी दिन मंदिर में रामलला भी विराजमान हो गए थे. लेकिन मंदिर के लिए दो और ऐसी मूर्तियां हैं, जो समय से तैयार की तो गईं. लेकिन इन मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा नहीं की गई है. राम मंदिर निर्माण के दौरान श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से देश के तीन मूर्ति कला में मशहूर मूर्तिकारों को रामलला की 5 साल की खड़ी मुद्रा में हाथ में धनुष बाण धारण किए कमल दल पर विराजमान अवस्था में मूर्ति के निर्माण की जिम्मेदारी दी गई थी.
सभी मूर्तिकारों ने अयोध्या धाम में ही रह कर इन तीनों मूर्तियों को अंतिम रूप दिया था. बालक राम की ये तीन दिव्य मूर्तियां समय पर निर्मित भी हो गई थी. तीनों मूर्तियों में से एक काले पत्थर की मूर्ति, जिसे मैसूर के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज ने गढ़ा था. दूसरी सफेद संगमरमर की, जिसे राजस्थान के सत्यनारायण पांडे ने गढ़ा था. तीसरी मूर्ति जो श्याम वर्ण पर उकेरी गई है. उसका निर्माण बेंगलुरु के रहने वाले मूर्तिकार जी. एल भट्ट ने किया और ये उनकी कला का अद्भुत उदाहरण है.
रामसेवक पुरम में रखी हैं बाकी 2 मूर्तियां
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की धार्मिक समिति की ओर से कर्नाटक के मूर्तिकार योगी राज की ओर से निर्मित काले पत्थर की बाल रूप वाली मूर्ति को राम मंदिर के गर्भगृह में विराजित करने का फैसला लिया गया था. इस प्रतिमा को 22 जनवरी 2024 को रामलला के रूप में मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित की गई. लेकिन बाकी दो मूर्तियां सफेद संगमरमर और कृष्ण शिल्पी द्वारा निर्मित आज भी रामसेवक पुरम के एक सुरक्षित कक्ष में विराजमान हैं. न तो उन्हें दर्शन का सौभाग्य मिला और न ही मंदिर परिसर में स्थान मिला है.
ट्रस्ट की अगली बैठक में फैसला
अब सवाल ये है क्या ये मूर्तियां सिर्फ ‘प्रतिस्पर्धा’ में पीछे रह गईं या फिर इनके भाग्य में कोई और आध्यात्मिक उद्देश्य लिखा है. मंदिर परिसर में एक दूसरी प्राण-प्रतिष्ठा की योजना पर काम चल रहा है. इस योजना के तहत इन दिव्य मूर्तियों में से एक की प्रतिष्ठा संभव है. हालांकि अंतिम निर्णय श्री राम जन्मभूमि ट्रस्ट की अगली बैठक में लिया जाएगा. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने भी स्पष्ट किया है कि यह मुद्दा अगली बैठक में रखा जाएगा. वहीं ट्रस्ट के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि ये भी प्रभु श्रीराम की प्रतिमाएं हैं. इन्हें उपेक्षित नहीं रखा जा सकता. यह सिर्फ मूर्तियां नहीं, ये श्रीराम के प्रतीक हैं. श्रद्धा का केंद्र हैं और भक्तों की भावना का आधार हैं.