पेट रोगों पर बोले पद्म विभूषण डाॅक्टर डी. नागेश्वर रेड्डी

सुमेर सिंह यदुवंशी

भोपाल। मेडिकल साइंस अब इतना विकसित हो गया है कि मनुष्य के स्टूल टेस्ट से ही यह पता लगाया जा सकता है कि उसे कब हार्ट अटैक अथवा ब्रेन स्ट्रोक होने वाला है। जापान और हांगकांग जैसे देशों में इस विधि का भरपूर उपयोग हो रहा है। दरअसल मनुष्य के मल के रंग से ही उसकी शरीर व्याधि का पता लग जाता है। ऐसे रोगों के इलाज के लिए आजकल प्री प्रो बायोटिक दवाअों का सफलता से उपयोग किया जा रहा है।

यह जानकारी हैदराबाद के विश्व प्रसिद्ध पेट रोग विशेषज्ञ डाॅ.डी. नागेश्वर रेड्डी ने देशबंधु से खास मुलाकात में दी।
अपनी चिकित्सकीय प्रतिभा और सेवा के लिए भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित डाॅ. रेड्डी रविवार को भोपाल के मिंटो हाॅल में आयोजित डाक्टर्स कान्फ्रेंस में भाग लेने आये थे। डाक्टर रेड्डी का हैदराबाद में एशियन इंस्टीटयूट आॅफ गैस्ट्रो इन्फाॅलाॅजी (ए.आई.जी.) हाॅस्पिटल है, जहां पेट संबंधी सभी बीमारियों का समुचित इलाज किया जाता है। यह अस्पताल पेट रोगों के इलाज के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। डाॅ.रेड्डी इस कांफ्रेंस में भाग लेने अल्प प्रवास पर कार्यक्रम में भाग लेने के लिये भोपाल आये थे।

इस प्रतिनिधि से चर्चा करते हुए डाॅ. रेड्डी ने कहा कि पेट की बीमारियों का असल कारण बड़ी आंत में रहने वाले मित्र बै‍क्टीरिया का डिस्टर्ब होना है। वास्तव ये मनुष्य के मित्र कीट हैं, लेकिन अगर पेट में कोई इन्फेक्शन हो जाये तो यह बेक्टिीरिया डिस्टर्ब हो जाते हैं। और व्यक्ति बीमार पड़ जाता है। इसके इलाज के लिए आजकल  प्री प्रो-बायोटिक दवाओं का उपयोग कारगर साबित होता है।

डाॅ. रेड्डी ने बताया कि आजकल पेट और लीवर की बीमारी विश्वव्यापी समस्या बन गई है। इसका कारण समय के साथ-साथ खान-पान के तौर तरीकों का बदलना और अनियमित जीवन शैली है, जिसके कारण कई तरह की बीमारियां देखने को मिल रही है। हालांकि ऐसी बीमारियों के उपचार खोजने में मेडिकल साइंस भी पीछे नहीं है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में मेडिकल साइंस नई उंचाइयों को छू रहा है। अलबत्ता  गेस्ट्रो के मामले में जापान और हांगकांग काफी आगे हैं। वहां हार्ट प्राॅब्लम और ब्रेन स्ट्रोक जैसे रोगों की जांच स्टूल टेस्ट ( मल की जांच) से ही हो जाती है। डाॅक्टर रेड़्डी के अनुसार दरअसल  पेट भी दिमाग की तरह काम करता है और  पेट की बीमारी ही सारी व्य‍ाधियों की जड़ है, अगर पेट साफ रहता है तो व्यक्ति के बीमार होने के चांस बहुत कम होते हैं।

कैसे बनते हैं प्री प्रो-बायोटिक कैप्सूल

डाॅक्टर डी. नागेश्वर रेड्डी ने बताया कि पेट की समस्या आंतों के अंदर रहने वाले बैक्टीरिया के डिस्टर्ब होने से बनती है, जिसे ठीक करने के लिये फार्मास्युटिकल कंपनी अपनी लैब में प्री प्रो-बायोटिक कैप्सूल बनाती है। यह कैप्सूल स्वस्थ व्यक्ति के स्टूल (मल) से तैयार किये जाते हैं। स्वस्थ व्यक्ति के स्टूल में जो बेक्टीरिया होते हैं उन्हें कंपनी कैप्सूल के रूप में तैयार कर देती है, जिनके सेवन से बीमार व्यक्ति की आंतों में दोबारा स्वस्थ बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं। इस तरह वह व्यक्ति पेट की बीमारी से छुटकारा पा लेता है। बड़ी आंत के अंदर जो ‘मित्र बैक्टीरिया’ होते हैं उनका रंग पीला होता है। इसी कारण मल का रंग भी अमूमन पीला रहता है। लेकिन जिस व्यक्ति के मल का रंग बदल जाता है, वह धीरे-धीरे पेट की बीमारी से ग्रस्त हो जाता है।

राष्ट्रीय कांफ्रेंस में आये देशभर के डाॅक्टर्स

गौरतलब है कि राजधानी के मिंटो हाॅल में कार्डियोलाॅजी डायबेटोलाॅजी, ई.सी.जी., ईको एवं क्रिटिकल केयर की 22वीं राष्ट्रीय कांफ्रेंस का 2 दिनी आयोजन किया गया था।  इसके अंतिम दिन रविवार को विश्व प्रसिद्ध गेस्ट्रो इन्ट्राॅलाॅजिस्ट डाॅक्टर डी.नागेश्वर रेड्डी भोपाल आये थे। इनके अलावा देशभर के कई नामचीन डाॅक्टरों ने भी कांफ्रेंस में भाग लिया। कार्यक्रम का आयोजन राजधानी के प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डाॅ.पी.सी.मनोरिया ने किया था।